ترجمة سورة النصر

ترجمة سهيل فاروق خان (Suhel Farooq Khan)

إِذَا جَاءَ نَصْرُ اللَّهِ وَالْفَتْحُ 1

ऐ रसूल जब ख़ुदा की मदद आ पहँचेगी

وَرَأَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُونَ فِي دِينِ اللَّهِ أَفْوَاجًا 2

और फतेह (मक्का) हो जाएगी और तुम लोगों को देखोगे कि गोल के गोल ख़ुदा के दीन में दाख़िल हो रहे हैं

فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُ ۚ إِنَّهُ كَانَ تَوَّابًا 3

तो तुम अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करना और उसी से मग़फेरत की दुआ माँगना वह बेशक बड़ा माफ़ करने वाला है