ترجمة سورة فاطر الآية 32

ترجمة سهيل فاروق خان (Suhel Farooq Khan)

ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ وَمِنْهُمْ مُقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ 32

फिर हमने अपने बन्दगान में से ख़ास उनको कुरान का वारिस बनाया जिन्हें (अहल समझकर) मुन्तख़िब किया क्योंकि बन्दों में से कुछ तो (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सितम ढाते हैं और कुछ उनमें से (नेकी बदी के) दरमियान हैं और उनमें से कुछ लोग खुदा के इख़तेयार से नेकों में (औरों से) गोया सबकत ले गए हैं (इन्तेख़ाब व सबक़त) तो खुदा का बड़ा फज़ल है