ترجمة سورة النساء الآية 104

ترجمة سهيل فاروق خان (Suhel Farooq Khan)

وَلَا تَهِنُوا فِي ابْتِغَاءِ الْقَوْمِ ۖ إِنْ تَكُونُوا تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمُونَ ۖ وَتَرْجُونَ مِنَ اللَّهِ مَا لَا يَرْجُونَ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا 104

और (मुसलमानों) दुशमनों के पीछा करने में सुस्ती न करो अगर लड़ाई में तुमको तकलीफ़ पहुंचती है तो जैसी तुमको तकलीफ़ पहुंचती है उनको भी वैसी ही अज़ीयत होती है और (तुमको) ये भी (उम्मीद है कि) तुम ख़ुदा से वह वह उम्मीदें रखते हो जो (उनको) नसीब नहीं और ख़ुदा तो सबसे वाक़िफ़ (और) हिकमत वाला है